पुलसिरात का मंज़र
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने फ़रमाया:
सब से पहले में और मेरे उम्मती पुल सिरात को तय करेंगे”
“पुल सिरात की तफ़सील”
क़यामत में जब मौजूदा आसमान और ज़मीन बदल दिये जाएंगे और पुल सिरात पर से गुज़रना होगा वहाँ सिर्फ़ दो मक़ामात होंगे जन्नत ओर जहन्नम,
जन्नत तक पँहुचने के लिए लाज़मी जहन्नम के ऊपर से गुज़रना होगा | जहन्नम के ऊपर एक पुल बनाया जाएगा, इसका नाम “अलसिरात”है इससे गुज़र कर जब इसके पार पंहुचेंगे वहाँ जन्नत का दरवाज़ा होगा,वहाँ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम मौजूद होंगे और अहले जन्नत का इस्तग़बाल करेंगे|
यह पुल सिरात दर्जा ज़ेल सिफ़त का हामिल होगा:
1.बाल से ज़्यादा बारीक होगा,
2.तलवार से ज़्यादा तेज़ होगा,
3.सख़्त अंधेरे में होगा,
उसके निचे गहराईयों में जहन्नम भी निहायत तारीकी में होगी. सख़्त भपरी हुई ओर गज़ब नाक होगी,
4.गुनाह गारों के गुनाह इस पर से गुज़रते वक़्त मजिस्म ईसकी पीठ पर होंगे, अगर इस के गुनाह ज़्यादा होंगे तो उसके बोझ से इसकी रफ़्तार हल्की होगी,
“अल्लाह तआला उस सूरत से हमें अपनी पनाह में रखे”, और जो शख़्स गुनाहों से हल्के होंगे तो उसकी रफ़्तार पुल सिरात पर तेज़ होगी,
5.उस पुल के ऊपर आंकड़े लगे हुए होंगे और निचे कांटे लगे हुए होंगेजो क़दमों ज़ख़्मी करके उसे मुतास्सिर करेंगे लोग अपनी बद आमालियों के लिहाज़ से उससे मुतास्सिर होंगे,
6.जिन लोगों की बेईमानी ओर बद आमालियों की वजह से पैर फ़िसल कर जहन्नम के गढ़े में गिर रहे होंगे बुलन्द चीख़ पुकार से पुल सिरात पर दहशत तारी होगी,
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम पुल सिरात की दूसरी जानिब जन्नत के दरवाज़े पर खड़े होंगे, जब तुम पुल सिरात पर पहला क़दम रख रहे होंगे
आप सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम तुम्हारे लिए अल्लाह तआला से दुआ करते हुए कहेंगे। “या रब्बी सल्लिम, या रब्बि सल्लिम”
आप भी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम पर दरूद पढें:
“अल्लाहुम्मा सल्ली व सल्लिम अलल हबीब मुहम्मद”
लोग अपनी आँखों से अपने सामने बहुत सों को पुल सिरात से गिरता हुआ देखेंगे और बहुत सों को देखेंगे कि वह उससे निजात पा गए,
बन्दा अपने वाल्दैन को पुल सिरात पर देखेगा, लेकिन उनकी कोई फ़िक्र नहीं करेगा,
वहां तो बस एकही फ़िक्र होगी के किसी तरह ख़ुद पार हो जाएँ,
रिवायत में है कि हज़रत आएशा रज़ि. क़यामत को याद कर के रोने लगीं,
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने पूंछा:
आएशा क्या बात है?
हज़रत आएशा रज़ि. ने फ़रमाया: मुझे क़यामत याद आगई,
या रसूल अल्लाह क्या वहाँ हम अपने वाल्दैन को याद रखेंगे?
क्या वहाँ हम अपने मेहबूब लोगों को याद रखेंगे?
आप सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने फ़रमाया:
हाँ याद रखेंगे,
लेकिन वहाँ तीन मक़ामात ऐसे होंगे जहां कोई याद नहीं रहेगा,
1.जब किसी के आमाल तोले जाएंगे
2.जब नामाए आमाल दिए जाएंगे
3.जब पुल सिरात पर होंगे