इमाम की इज्जत करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है

masjid imam ki izzat

 

मस्जिद के इमामों की इज्जत करो वो तुम्हारे सरों के ताज है उनकी भी अपनी जिंदगी है उनके भी कुछ निजी मामला हुवा करते हैं उनको खुश रखो अल्लाह हम सब को खुश रखेगा किसी भी इमाम का दिल दुखाने से पहले ये सोचो कि वो हमारे नौकर नहीं बल्कि हमारे रहबर और पेशवा और अल्लाह की बारगाह में खड़े होने वाले वकील है उनकी ताज़ीम करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।

इमाम साहब का मर्तबा एक खूबसूरत वाक़्या

आज मैं एक कसाई की दुकान पर बैठा था तभी उस कसाई की दुकान पर एक नौजवान सफेद लिबास में चेहरे पर दाढ़ी, सर पर टोपी, आंखों पर चश्मा लगाए दुकान में दाख़िल हुआ दुकान पर काफ़ी भीड़ लगी हुई थी लोगों की आवाज़ से दुकान गूंज रही थी भाई 1 किलो गोश्त देना भाई 2 किलो गोश्त देना, भाई आधा किलो गोश्त देना। ऐसी आवाजें शोर पैदा कर रही थी।

उस दुकान में इन्हीं आवाजों के बीच जैसे ही वो नौजवान दाख़िल हुआ दुकान में कसाई ने सारे ग्राहकों को छोड़कर उस नौजवान से पूछा क्या चाहिए भाई आपको?

नौजवान ने कहा आधा किलो गोश्त चाहिए कसाई ने फ़ौरन बेहतरीन गोश्त का टुकड़ा काटा और अच्छी तरह से बोटी बना कर दे दिया।

नौजवान ने कसाई को पैसे देने के लिए हाथ बढ़ाया तो कसाई ने लेने से इंकार कर दिया। नौजवान ने कहा जावेद भाई आप हमेशा ऐसा ही करते हो, कसाई इस बात पर थोड़ा मुस्कुराया दिया और नौजवान भी मुस्कुराते हुए दुकान से बाहर चला गया

दुकान पर और जो ग्राहक थे वो तरह तरह की बातें करने लगे कि हम कब से खड़े हैं और कसाई को देखो लगता है इसको चर्बी चढ़ी है। ग्राहक की कोई इज़्ज़त ही नहीं तभी मेरे दिमाग़ में सवाल के घोड़े दौड़ने लगे मैं दुकान खाली होने का इंतज़ार करने लगा।

सारे ग्राहकों को निपटा कर जैसे ही कसाई खाली हुआ मैंने कहा एक किलो गोश्त मेरे लिए बनाना फिर मैंने कहा- अभी जो नौजवान आपकी दुकान से गोश्त लेकर गया है क्या वह आपका कोई क़रीबी रिश्तेदार है या दोस्त है सारे ग्राहक छोड़कर आप ने सबसे पहले उसको गोश्त दिया। कसाई मुस्कुराया और बोला जी नहीं।

मैं बहुत अचंभे में पड़ गया फिर मैंने बोला तो फिर कौन था वह नौजवान कसाई बोला की वो मेरी मस्जिद के इमाम साहब थे जो शख्स मेरी आख़िरत बनाने की फिक्र में रहता है और मेरी नमाज़ो की ज़िम्मेदारी ले रखी है मेरे बच्चों को क़ुरआन और हदीस का दर्स देता है क्या मैं दुनिया में उसके साथ अच्छा सुलूक़ न करूं?

मैंने कहा अच्छा मगर तुमने पैसे क्यों नहीं लिए कसाई फिर मुस्कुराया और बोला क्या तुम्हें नहीं पता मस्जिदों के इमामों को क्या दिया जाता है ? कितनी तनख़्वाह है उनकी इतने का तो साहब आप लोग महीने भर में सिगरेट पी जाते हो।

मैं सोचने लगा वाक़ई बात में तो दम है। कसाई फिर बोला साहब यह हमारी क़ौम का खज़ाना हैं। इनको बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। बाज़ार के तमाम दुकान वालों ने मिलकर एक फैसला किया है कि मौलाना साहब से कोई पैसा नहीं लेगा सिर्फ़ मैं ही नहीं यह बाल दाढ़ी की दुकान वाला नाई, राशन की दुकान वाला वह टेलर मास्टर, यह डॉक्टर साहब, वह मेडिकल वाला, दूध वाला, सब्जी वाला कोई उनसे पैसे नहीं लेता भाई इतना तो हम कर ही सकते हैं?

और फिर मुस्कुराकर कहने लगा साहब आधा किलो गोश्त के बदले जन्नत मुनाफ़े का सौदा है। यह लो जी आप के गोश्त की थैली।

उसने कहा और मैंने पैसा कसाई की तरफ़ बढ़ाया और कहा पर भाई मैं तो नौकरी करता हूं काश मैं भी इस तरह का कोई बिज़नेस करता । कसाई ने कहा बहुत आसान है सामने वाली दुकान में मौलाना साहब ने अपनी साइकिल बनाने के लिए दिया है ?

सबक दोस्तो इस वाक़िअ से आप को क्या समझ आया की हमारी मस्जिदों के इमाम साहब या मोअ जजिन साहब की तनख्वाह बोहोत कम होती है अक्सर देखा और सुना गया है के कहीं कहीं पर इमाम साहब की इतनी कम तनख्वाह होती है के उन अल्लाह के बंदों को अपने बच्चो का पेट पालना भी मुस्किल हो जाता है

तो दोस्तो हम सब को चाहिए के हम से जितना हो सके हम उनकी मदद करे अल्लाह की रजा के लिए आखिर कार वो भी तो हमारी मदद करते है हमसे आख़िरत की तैयारी करवाते है हमे नमाज पढ़ाते है इसलिए हमारा भी ये फर्ज बनता है के हम अल्लाह के ऐसे नेक बंदों की ज्यादा से ज्यादा मदद करें